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Tuesday, 28 December 2021

माखन-लाल चतुर्वेदी की कविता वीर-पूजा

 


इस कविता वीर-पूजा में कविवर माखन-लाल चतुर्वेदी ने देश के लिए बलिदान होनो को तैयार वीरों की पूजा वर्णन किया है।

देशभक्त वीर को अमरता, अभय और विजय की शुभकामना देते हुए उसकी वीरता की प्रशंसा की गयी है। कवि ने वीरों का राष्ट्रिय जागरण का आधार माना है। वे हर प्रकार की चुनौती का सामना करने को सदा कमर कसकर तैयार रहते है।

वे वीर को दुखी का दुख हरनेवाले विष्णु के समान मानते है और बताते है कि समस्त देशवासी आरती की थाली सजाकर ऐसे बलिदानी वीर का पूजा करते है। हिमालय उसे अर्घ्यदान देता है और समुद्र सके पाँव धोता है।

       कवि का मत है कि सच्चे वीर के भुजा उठाकर संकेत करने से पूरी पृथ्वी प्रसन्न हो उठती है।

"जय हो - यह हुँकार हृदय दहलाने वाली

काँप उठी उस वन-प्रदेश की डाली-डाली॥"

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