हर एक राष्ट्र के लिए एक भाषा होती है, जिस में जनता अपनी सभ्यता, संस्कृति, धर्म, चिंतन आदि को व्यक्त करती है, उसे राष्ट्रभाषा कहते है।
किसी राष्ट्र में सर्वाधिक प्रयोग होनोवाली भाषा ही वहाँ की राष्ट्रभाषा होती है। उसकी अपनी भाषा ही उसे उन्नति के शिखरों तक पहुँचासकती है।
हिन्दी को लेकर संघर्ष के कारण सरकार ने भी तत्काल यह व्यवस्था कर दी कि अहिन्दी भाषी राज्य जब तक न चाहे तब तक हिन्दी के स्थान पर अंग्रेजी रहेगी।
हिन्दी के प्रचार के लिए केंद्र ने हिन्दी निर्देशालय की स्थापना की। हिन्दी साहित्य सम्मेलन, नागरी प्रचारिणी सभा, हिन्दी प्रचारिणी सभा आदि संस्थाओं के द्वारा हिन्दी का प्रचार - प्रसार किया जा रहा है।
राजभाषा घोषित कर दिये जाने के बाद कुछ राज्यों तथा वहाँ की जनता ने इसका कडा विरोध किया।
मातृभाषा के साथ हिन्दी का ज्ञान संपूर्ण देश की शिक्षा-संस्थाओं में अनिवार्य बनाया जाए।
हमें यह संकल्प करना चाहिए की अपने सभी कार्यों में हिन्दी का ही प्रयोग करे।
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