पण्डित रामनरेश त्रिपाठी की प्रसिद्ध कविता स्वदेश-प्रेम ,उनके काव्य स्वप्न से ली गई है। इस में देश प्रेम की सीख के साथ ही देश हितार्थ आत्म-त्याग करने का भी आह्वान है।
कविता के पूर्व भाग में भारत की प्रचीन गौरव-गाथा का बखान है। कवि ने कहा है कि हे देशवासियों भारत का गौरव-पूर्ण अतीत और इस के सम्मान के लिए अपने प्राण न्यौछावर करनेवाले बलिदानी देश के कण-कण में मुखरित है।
उन वीरों के बलिदान की गवाही सूर्य, चन्द्र, तारागण और स्वयं आकाश देती है, क्यों कि इन्होने जयघोष अनेक बार सुना है। हिमालय, सागर और नदियाँ उनके यश के वाहक है।
कवि याद दिलाते है कि हे युवकों तुम उन्ही पराक्रमी पूर्वजों के वंशज हो। तुम्हारा यह दायित्व है कि उनकी विरासत की रक्षा करो।
कवि याद दिलाते है कि भारत भूमि पृथवी पर सर्वश्रेष्ठ है। अतः इसकी स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए प्राण की बाजी लगाना हर भारतीय का कर्तव्य है।
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