जिस शब्द से व्यापार होतो हो, उसे क्रिया कहते है। कर्म के अनुसार क्रिया के दो भेद है।
1) अकर्मक क्रिया - जिस क्रिया का कोई कर्म नही होता, वह अकर्मक क्रिया कहलाता है।
जैसे, राम हँसता है। सीता जाती है।
2) सकर्मक क्रिया - जिस क्रिया का कर्म होता है, वह सकर्मक क्रिया कहलाता है।
जैसे, राम पाठ पढता है। सीता गीत गाती है।
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बनावट की दृष्टि से क्रिया के दो भेद है।
1) मूल क्रिया - जो दूसरी धातु से न बना हो, उसे मूल क्रिया कहते है। जैसे, आ, जा।
2) यौगिक क्रिया - जो दूसरी धातु से बनी हो, उसे यौगिक क्रिया कहते है। जैसे, पढा, लिखा।
यौगिक क्रिया के पाँच भेद है।
1) प्रेरणार्थक क्रिया - जो दूसरे को काम करने का प्रेरण देता है, वह प्रेरणार्थक क्रिया कहलाता है।
जैसे, पढ - पढा - पढवा।
2) नामधातु - संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण शब्दों से बनी क्रिया, नामधातु कहलाती है।
जैसे, हाथ से हथियाना। लाज से लजाना।
3) सहायक क्रिया - जो क्रिया सहायक बनता है, वह सहायक क्रिया कहलाता है।
4) संयुक्त क्रिया - दो या तीन धातुओं से जो क्रिया बनती है उसे संयुक्त क्रिया कहते है।
जैसे, तीर निकल चुका। वह खेलना चाहता है।
5) अनुकरणवाचक - ध्वनि या दृश्य से जो क्रिया बनता है, वह अनुकरणवाचक क्रिया कहलाता है।
जैसे, खटखटाना, चमचमाना।
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कर्ता, कर्म और भाव की दृष्टि से क्रिया के तीन भेद है।
1) कर्तृवाच्य - वाक्य में कर्ता मुख्य हो तो वह कर्तृवाच्य कहलाता है।
जैसे, राम कविता लिखता है। सीता फल खाती है।
2) कर्मवाच्य - वाक्य में कर्म की मुख्यता हो तो वह कर्मवाच्य कहलाता है।
जैसे, राम से कविता लिखी जाती है। सीता से फल खाया जाता है।
3) भाववाच्य - वाक्य में भाव की मुख्यता हो तो वह भाववाच्य कहलाता है।
जैसे, मुझ से बैठा न गया। बूढी से दौडा न गया।
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