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Sunday, 16 January 2022

पंचवटी खंडकाव्य की प्राकृतिक छटा का वर्णन

 



पंचवटी नाम ही स्वयं प्रकृति से सरोकार रखती है।

प्रकृति के सुरम्य वर्णन से कथा प्रारंभ होती है। "चारु चन्द की चंचल किरणें खेल रही थीं जल-थल में, स्वच्छ चांदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में"॥

इस में लक्ष्मण-शूर्पणखा और राम-सीता के साथ कवि ने प्रकृति को भी एक पात्र के रूप में अवतरित किया है।

इस प्रकृति-निकेतन में मुनियों का सत्संग मिलता है और परिसर इतना पावन है कि "सिंह और मृग एक घाट पर पानी पीते है"॥

पंचवटी के प्रकृति वर्णन में गुप्त जी ने कमाल किया है।

 उस का एक और उदाहरण-"धरती अपने हरित तृणों कि नोकों से पुलक प्रकट करती है तरु भी मंद पवन के झोंको से झीम रहे है, गोदावरी नदी का ताल दे रहा है और पत्ते नाच रहे है"॥

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